सुरेन्द्र मिश्रा
भोपाल। मध्य प्रदेश के श्रमिक भारत के कौने-कौने में काम करने जाते हैं। आखिर क्यों जाते हैं, क्या प्रदेश में इनकी रोजी-रोटी की व्यवस्था नहीं है। यदि है तो इनकी क्या मजबूरी है ? कि यह घर परिवार छोड़कर अन्य प्रदेशों में मजदूरी करने मजबूर हैं । अपने घर, परिवार और नाते रिश्तेदारों के बीच रहने का मन सबका होता है लेकिन पापी पेट का सवाल है जो कोसों दूर ले जाता है ।
प्रदेश के कर्णधार इन बेनाम मजदूरों को सिर्फ पांच वर्ष में एक बार लालीपाप की गोली देने जरुर जाता है, जिनके वचन पत्र में अनेक आश्वासन दिए जाते हैं । पार्टी कोई भी हो जो गरीबों से वोट लेती है और अमीरों की खातिरदारी करती है। उद्योगपति हो या नेता, शासकीय कर्मचारी हो या दलाल सरकार में इन सबकी खूब चलती है। एसी में बैठकर योजनाएं बनती हैं जो कागजों में उतरते – उतरते करोड़ों खर्च हो जाते हैं। जिस हितग्राही या मजदूर को लाभ मिलना चाहिए, उनका लाभ बीच वाले हाथ ही साफ कर बैठते हैं। किसान, मजदूर और मध्यम वर्ग के लोग ईमानदारी से की गई मेहनत मजदूरी के लिए यहां-वहां भटकता रहता है। क़िस्मत का मारा गरीब जब लाचार हो जाता है तो वह मौत को गले लगा लेता है। सरकार की बदनामी समझो या लाचारी के चलते पीड़ित परिवार को सरकारी मदद के नाम पर झुनझुना थमा देती है । जब सुनने आता है कि कफ़न के लिए दाम नहीं तो हर आंख में आसू आ जाते हैं। फिर हमारे समाज सेवक सेवाएं देने में पीछे नहीं हटते।
सरकार ले कोरोना से सबक
संकट के इस हालत को देखते हुए सरकार को सबक लेना चाहिए कि हमारे प्रदेश के श्रमिकों का ध्यान रखकर ऐसा प्रोजेक्ट लगाएं, जिससे मजदूरों का प्रदेश में रहकर पेट भरे और प्रदेश का विकास हो। चीन से समेट रही कारोबार कंपनियों की जांच-पड़ताल कर प्रदेश की भूमि में कारोबार कंपनियों को परमीशन देना चाहिए। हो सके तो उद्योग पंचायत, तहसील या जिला स्तर पर लगवाया जाए। जिसे सरकार कह सकती है आपका काम आपके द्वार।
बशर्ते सरकार की नीति और नियति साफ हो जो गरीब हो , बेरोजगार हो, मेहनती हो उसके हाथ में काम मिले सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। बेरोजगार को रोजगार और भूखे को रोटी मिलेगी तो प्रदेश में खुशहाली आएगी। यदि ऐसा होता है तो दर-दर भटकते मजदूर घर बैठे सरकार के गुणगान गायेंगे । वहीं मध्यप्रदेश का मजदूर बाहर जाने को मजबूर नहीं होगा।