शराब के लिए बेसब्र हुई सरकारें, खुलीं दुकानें तो लग गई कतारें
देवदत्त दुबे

भोपाल। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में आजादी के 73 साल बाद भी अधिकांश राज्य सरकारें शराब बिक्री को लेकर इतनी बेसब्र नजर आईं मानो यदि शराब से राजस्व की आय नहीं हुई तो फिर सरकार कैसे चलेगी। यही कारण है की कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन के चलते बंद शराब दुकानों को खुलवाने की वकालत देश की अधिकांश राज्य सरकारों ने की थी और जहां-जहां शराब दुकान खोली गई सुबह से ही लंबी कतारें लग गईं।

दरअसल किसी भी प्रकार के नशे के बारे में माना जाता है, यदि लगातार 21 दिन तक छोड़ा जाए तो फिर उसकी तलब नहीं लगती। कोरोना महामारी के कारण देश में लगभग पिछले 40 दिनों से लॉक डाउन था जिसके कारण शराब की बिक्री भी नहीं हो रही थी। ऐसे में राज्य सरकारों को अच्छा मौका था कि वे अघोषित रूप से शराब बंदी कर लेते और अभी शराब की दुकानों को खोलने की अनुमति नहीं देते। लेकिन शराबियों से ज्यादा राज्य सरकारें शराब दुकान खोलने को तड़पती नजर आई और सोमवार को जब देश के जिन भी हिस्सों में शराब दुकान खोली वहां सुबह से ही शराब दुकानों के सामने लंबी-लंबी कतारें लग गई अधिकांश जगह सोशल डिस्टेंस का भी पालन नहीं किया गया। ऐसे में लॉक डाउन के दौरान जो घरों में कैद रह कर लोगों ने कष्ट उठाए बेकार जा सकते हैं। क्योंकि अब यदि भीड़ भाड़ में एक भी संक्रमित व्यक्ति आ गया तो फिर संक्रमण फैलने में में देर नहीं लगेगी।

बहरहाल मध्यप्रदेश में शराब ठेकेदारों ने शराब बिक्री को लेकर सरकार के साथ हुई चर्चा में कुछ सवाल उठाए हैं जिसमें उन्होंने आशंका जताई है कि संक्रमित क्षेत्रों से शराब जब ग्रीन क्षेत्रों में बिकने को आएगी तब शराब के साथ कहीं संक्रमण ना जाए और उसका दोषारोपण व्यापारियों पर हो इस कारण सरकार इस संबंध में सोच विचार कर लें हालांकि कुछ जिलों में कलेक्टरों ने कुछ शर्तों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में शराब बिक्री के आदेश जारी किए हैं। लेकिन सबसे बड़ा विषय यही है कि राज्य सरकारें आज भी उद्योग धंधे व्यापार आयात निर्यात निर्माण और भी कितने संसाधन हैं। जिनसे आम जनता से टैक्स लिया जाता है लेकिन उससे प्रदेश नहीं चल पा रहा सरकारों को आज भी शराब बिक्री की बेसब्री है। जबकि सरकार जानती है की शराब के कारण परिवार में लड़ाई झगड़े तनाव और विभिन्न प्रकार की बीमारियां आमजन को परेशानियां पैदा करती हैं। इसके बावजूद जान की जगह जहान की चिंता कर रहीं सरकारें शराब बिक्री के लिए बेताब हैं। सरकार को यह भी मालूम है लॉक डाउन के चलते आम आदमी का काम धंधा सब बंद है। प्राइवेट नौकरियां छूट गई हैं ऐसे में जो लोग खाने के लिए सरकार और समाजसेवियों के सामने हाथ फैलाए थे कहीं-कहीं भूखों मरने की नौबत थी। अब वही लोग शराब के लिए पैसे कहां से लाएंगे या तो वे अपने घर का सामान बेचेंगे पत्नियों के गहना बेचेंगे या जमीन बेचेंगे क्योंकि शराब खरीदने के लिए तो पैसा चाहिए ही और ऐसे में घरेलू बाद में बाद भी बढ़ सकते हैं।

कुल मिलाकर शराबियों से ज्यादा सरकार को शराब बेचने की लत लग गई है। क्योंकि राजस्व की आय से ज्यादा अधिकारियों को जो व्यक्तिगत तौर पर फायदे होते हैं वह पिछले 1 माह से बंद है लेकिन छोटे-मोटे लाभ के लिए जिस तरह से शराब की बिक्री शुरू की जा रही है। वह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है देश के कितने राज्य हैं। जहां शराबबंदी है लेकिन फिर भी वहां सरकारें काम कर रही हैं खासकर बिहार जैसे गरीब राज्य में भी जब शराब बंदी लागू हो सकती है तो देश के सभी राज्यों में शराबबंदी हो सकती है और खासकर ऐसे विकराल समय में जब लोगों को दूर दूर रखना है नशे से दूर रखना है उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना है तब सरकारों द्वारा शराब बेचने का निर्णय किसी के गले नहीं उतर रहा है भगवान ना करे यदि कोरोना महामारी देश में तेजी से फैली तो फिर यह शराब बिक्री ही उसके लिए जिम्मेदार होगी और तब सरकारें किस मुंह से कह सकेंगे कि हम जनहित के लिए काम करते हैं और शराब बेचकर कौन सा जनहित सरकारें कर रही हैं। क्योंकि जो लोग 40 दिन से घरों में रहकर कम जरूरतों में जीवन यापन कर रहे हैं वह शराब के बगैर भी रह सकते थे या जो राजस्व की बात है सरकार कर रही है उसके बदले जो सुविधाएं देना चाहती है उसके बगैर भी आमजन रह लेते, लेकिन सरकार की शराब बेचने की तड़प किसी की भी समझ में नहीं आ रही।