महोबा से लौटकर दीपक तिवारी
बुंदेलखंड का इलाका पुरातात्विक संपदा के लिए केवल देश ही नहीं वरन विदेशों में भी जाना जाता है। यहां की पुरानी इमारतें वास्तु कला की मिसाल हैं। महोबा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कार्यालय के पास 1904 में बना क्राइस्टचर्च सीएनआई आकर्षण का केंद्र है। 116 साल पुराना चर्च महोबा में मुख्य मार्ग पर स्थित है।
बुंदेलखंड में लगभग सभी प्रकार का सांस्कृतिक परिवेश देखने को मिलता है। बुंदेलखंड के निवासियों में भाषा, कला और संस्कृति का पिरोया हुआ एक सूत्र प्रतिबिंबित होता है।
लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व के षोडश महाजनपदों के अंतर्गत चेदि का नाम आता है। यह यमुना नदी के निकट उन देशों में एक था जो कुरु, मत्स्य, काशी तथा कौरुष राज्यों से संबंध था। चंबल के पास मत्सयों का राज्य था। प्राचीन काल में बुंदेलखंड के पूर्वी भाग तथा कुछ अन्य भागों को मिलाकर चेदि राज्य बनता था।
बुंदेलखंड के क्षितिज पर स्थापत्य संबंधी गतिविधियां ईसवी सन के पूर्व शुरू हो गई थीं। सांची तथा भरहुत सतना में विशाल बौद्ध स्तूप बनाए गए। इन स्तूपों के स्थापत्य तथा मूर्ति शिल्प ने परवर्ती कला को भी प्रभावित किया। इस क्षेत्र में मुख्यत दो स्थापत्य की विधाएं देखने को मिलती हैं, मंदिर स्थापत्य एवं दुर्ग स्थापत्य।