कृषि विभाग की बीज उत्पादक समितियों, खाद-बीज विक्रेताओं से मिलीभगत


दीपक तिवारी
विदिशा। भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी का दर्जा अन्नदाताओं को भले ही दे दिया हो, लेकिन उनके नाम पर कृषि विभाग के अधिकारी से लेकर हर कोई बहती गंगा में डुबकी लगाना चाहता है। विदिशा का कृषि विभाग दूध का धुला नहीं है। सरकारी योजनाओं के नाम पर क्या-क्या होता है और पात्र किसानों को कितना लाभ मिलता है। यह किसी से छिपा नहीं है। 


विभाग के जिम्मेदार अफसरों द्वारा बीज संस्थाओं और खाद- बीज विक्रेताओं, कीटनाशक दवा निर्माता और विक्रेताओं का निरीक्षण ना कर आफिस में बैठकर ही सेटलमेंट कर लिया जाना अन्नदाताओं के साथ छलावा नहीं तो और क्या है। योजनाओं के सुचारू संचालन के लिए मैदान में क्रियान्वयन का  और बीज उत्पादक, विक्रेता, कीटनाशक व खाद विक्रेताओं का समय-समय पर निरीक्षण होना चाहिए लेकिन अधिकारी कागजों में ही निरीक्षण कर लेते हैं। 
एमपी धमाका ने किसानों के साथ हो रहे शोषण और अन्याय को देखते हुए विदिशा के उपसंचालक कृषि विकास एवं किसान कल्याण से सूचना के अधिकार के तहत जब निरीक्षण की जानकारी मांगी तो वे अब तक जानकारी ना देकर बंगले झाकते नजर आ रहे हैं। जाहिर है कि उपसंचालक के अधीनस्थ अफसरों द्वारा निरीक्षण का काम ना कर खाद बीज विक्रेताओं से सिर्फ सेटलमेंट किया जा रहा है और किसानों को अमानक खाद-बीज के बीच रोने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जानकारी हासिल करने के लिए एमपी धमाका ने मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग में अपील दाखिल कर दी है। 


लाइसेंस निलंबित करने के नाम पर खानापूर्ति


तत्कालीन कमलनाथ सरकार द्वारा प्रदेश भर में चलाए गए शुद्ध के लिए युद्ध अभियान में क्योंकि शासन का दबाव था इसलिए कृषि विभाग के अफसरों को ना चाहते हुए भी कई संस्थाओं का निरीक्षण करना पड़ा। लैब से अमानक बीज की रिपोर्ट आने पर 4-5 बीज उत्पादक समितियों के लाइसेंस बीज भंडारण और विक्रय पर रोक लगाने के लिए निलंबित किए लेकिन आदेश की कॉपी वरिष्ठ अफसरों को ना भेजकर कार्यालय में ही दबा दी गई। जिससे चहेती संस्थाओं का अमानक कारोबार चलता रहे। 
इस संबंध में एमपी धमाका ने जब उप संचालक कृषि एएस चौहान से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि हो सकता है किसी वजह से लाइसेंस निलंबित करने का आदेश संबंधित अधिकारियों को ना मिला हो। आदेश की कॉपी भेज दी जाएगी।