कोरोना संकट: पुलिस के लिए राहत या आफत"                     


ना तो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रियों आदि के दौरे और ना ही उनके न कोई सार्वजनिक कार्यक्रम, ना कोई सभा, ना कोई जुलूस, ना कोई शोभायात्रा, न कोई समारोह, न कोई त्योहारी आयोजन, न धरना- प्रदर्शन या और कोई आंदोलन, न कोई झगड़ा, न कोई लफड़ा, न कोई बलवा, न कोई दंगा ,न छेड़छाड़ ,न बलात्कार, न छीना झपटी ,न मारपीट ,न जेब कटी, न चोरी और न ही डकैती। जैसे अपराधों का भी हो गया लॉक डाउन।                       
सो , न तो लोग एफआईआर दर्ज कराने थाने जा रहे और न ही पुलिस पुराने अपराधों की विवेचना, जांच -पड़ताल, अभियोजन ,चालान, अदालती कार्यवाही आदि में लगी है। आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा और लोकायुक्त पुलिस के दफ्तर तो ठप से पड़े हैं।                    ऐसे में , दुनिया भर के तमाम तरह के झंझटों में रोजाना उलझी रहने वाली पुलिस को इन दिनों इन सब से निजात मिल गई है। वह                      इन दिनों हम सबके जीवन की रक्षा के लिए अब बस एक काम में जुटी है और वह है लॉकडाउन को सफल बनाना और लॉकडाउन तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना।                दूसरी ओर अति आवश्यक सेवाओं में लगे लोक सेवकों को छोड़कर , बाकी ज्यादातर विभागों ,आयोगों ,निगम- मंडलों, स्वायत्त संस्थाओं आदि के लाखों अधिकारी कर्मचारी घर बैठे हैं। जबकि उन्हें जरूरत वाली जगहों पर आवश्यक व्यवस्थाएं बनाने और जन जागरूकता बढ़ाने में जुटाया जा सकता है।
आत्मदीप,
पूर्व सूचना आयुक्त 
मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग