जय परशुराम, जय परशुराम
जय परशुराम, जय परशुराम
हे गौरीपति के भक्त तुम्हें
गौरी करती शत-शत प्रणाम
जब हुआ शम्भु का धनुष भंग
तब क्रोध देख रह गए दंग
उस जनक सभा के नर नारी
गरजे तरजे फरसा धारी
बोले यह विप्लव का क्षण है
सबका संहार करूं प्रण है
किसने तोड़ा यह कनक धनुष
बोलो बोलो हे जनक धनुष
करबद्ध आपके चरणों में नतमस्तक हो झुक गए राम
जय परशुराम ..............
था सहसबाहु का दुराचार
संस्कृति की जिसने तार तार
यज्ञों का ध्वंस कर रहा था
भीषण विध्वंस कर रहा था
तुम उठे हाथ में ले कुठार
असुरों के धड़ से सिर उतार
रण बीच भुजाएं काट काट
लाशों से डाली धरा पाट
भीषण कुठार की मारों से मच गया समर में कोहराम
जय परशुराम ..................
जब जब वसुधा पर बढ़ा पाप
तब मौन नहीं रह सके आप
मानवता के हित उठा चाप
रिपु भगे देखकर प्रबल ताप
संहारक अत्याचारों के
संरक्षक संत दुखारों के
उद्धारक करुण पुकारों के
संवाहक सत्य विचारों के
जब उठी दृष्टि तो चरणों में गिर पड़े सुभट कर त्राहिमाम
जय परशुराम ................
हे भृगुनायक उन्नत ललाट
आजानुबाहु हे बल विराट
हे शिव शंकर के अमर शिष्य
तुम वर्तमान तुम ही भविष्य
हे जटाजूट खल-काल कूट
दुष्टों पर पड़ते टूट टूट
तन गयीं भृकुटि जब गए रूठ
तब गए शत्रु के प्राण छूट
हे शस्त्र और शास्त्रज्ञ प्रज्ञ
हे क्रांतिरथी बल बुद्धि धाम
जय परशुराम जय परशुराम
- गौरी मिश्रा, नैनीताल
देवभूमि उत्तराखण्ड