सहारनपुर। योग साधना के लिए 1991 में सबसे पहले पद्मश्री सम्मान पाने वाले देश के वरिष्ठ योग गुरु स्वामी भारत भूषण ने सभी धार्मिक आस्थाओं के लोगों से कहा है को वो जनता कर्फ्यू को देश के लिए वरदान बना सकते हैं। उनके अनुसार एकांतवास को रूहानी जिंदगी का सबसे बड़ा आधार माना जाता है और लोग एकांत पाने को तरसते हैं। एकांत जहां अध्यात्मिक साधना में किसी भी तरह का कोई व्यवधान ना हो, कोई विघ्न ना हो जिससे कि व्यक्ति एकाग्र हो सके।
उन्होंने कहा कि प्रतिदिन के आम जनजीवन में एकांत हासिल कर पाना बहुत कठिन काम है और व्यक्ति इस बात के लिए तरसता रहता है फिर कब उसे एकांत मिले। यह अलग बात है आत्म साधना की गहराइयों को जब वह छू लेता है तो उसका भीड़ से दूर अपने एकांत स्वरूप में डूबे रहने का अभ्यास इतना गहरा जाता है कि फिर तो वह वह जग मेले की भारी भीड़ में भी एकांत का आनंद ले सकता है।
लेकिन परिस्थिति वश अगर इंसान को एकांत में रहने के लिए मजबूर कर दिया जाए तो वह इसे अपने लिए बंधन मानते हुए इसका सही उपयोग नहीं कर पाता। वह इसे एकांत नहीं बल्कि अकेलापन मानता है और एक साधक होने के नाते योगी भारत भूषण ये अनुभव करते हैं कि "अकेलापन त्रासता है जबकि एकांत तराशता है।"
इतिहास गवाह है कि सृजन का कार्य चाहे वह लौकिक हो या अलौकिक एकांत में ही हुआ है। जब हम परिस्थिति को बदलने की स्थिति में ना हों तो हमें अपना नजरिया बदलना होता है और विषम लगने वाली परिस्थिति के बारे में भी यह सोचना होता है कि इसमें क्या बेहतर छुपा हुआ है जिसका हम बहुत हितकर प्रयोग कर सकते हैं। 22 मार्च से चल रहे इस अनिवार्य एकांतवास के बारे में भी अगर हम ऐसा सोच लें और इसे मजबूरी न समझ कर एक अवसर के रूप में देखें तो बड़ा सकारात्मक बदलाव आ सकता है। उन्होंने याद करते हुए कहा कि ऐसी परिस्थिति के बारे में मेरे गुरु व वंदनीय पिता कहा करते थे कि हमें निराश नहीं होना चाहिए बल्कि अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए अगर हमें पनीर बनाना आता है तो दूध फट जाने की चिंता नहीं होती।
उन्होंने एकांत कि महत्ता समझाते हुए कहा कि दुनिया की सभी धार्मिक आस्थाओं में अपने भीतर की शक्तियों को पहचानने और विश्व शक्ति से जुड़ने की प्रक्रिया में एकांत को बड़ा महत्व दिया गया है और उसने एकांत को उपरति, एतेकाफ, आइसोलेशन आदि अलग-अलग नाम भी दिए गए हैं ठीक वैसे ही जैसे माला को, ध्यान को और यहां तक कि परमेश्वर को भी अलग-अलग नाम भले ही दिए हों, लेकिन गंतव्य सब का एक ही है जिसका उद्देश्य है संतुलन, शांति, प्रेम और आनंद। हमें मानने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि सामान्य जीवन शैली में रहते हुए जिस स्थिति को पाने के लिए हमें खास समय ढूंढना होता है, खास साधना कक्ष ढूंढना या बनना होता है, शोर-शराबे और अपनी निजता में बाहरी हस्तक्षेप से बचने के लिए खास उपाय करने पड़ते हैं। वह सब इस अनिवार्य जनता कर्फ्यू के रूप में हमें आसानी से मिल गया है। इसका हमें सिर्फ तुरंत और सही इस्तेमाल करना है। यदि हम प्रातः सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं, अपनी-अपनी आस्था के अनुसार संध्या, वंदन, नमाज करते हैं, सत साहित्य का अध्ययन करते हैं, आसन प्राणायाम ध्यान आदि योगाभ्यास करते हैं, परिवार में आध्यात्मिक चर्चा करते हैं, घर में उपलब्ध साधनों में खुशी-खुशी जीने का अभ्यास करते हैं, खुशी खुशी सादा घरेलू भोजन करते हैं और परमेश्वर का शुक्रिया करते हुए संकीर्तन जप आदि नियमित रूप से करते हैं तो निरोग रहने के साथ साथ अपने निजी जीवन में और पारिवारिक जीवन में एक बड़ा व सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।
योग गुरु श्री भूषण जी ने कहा कि सभी आस्थाओं के लोग प्रतिदिन शाम सात बजे आधा घंटे के लिए निरोगी सहयोगी सकारात्मक व ऊर्जावान विश्व का भाव मन में लेे कर अपने घरों में ही ध्यान में बैठने की शुरुआत आज से ही करें तो वह सामूहिक भाव तरंगों से आने वाले एक बड़े बदलाव के स्वयं साक्षी होंगे।
मैंने मोक्षायतन योग संस्थान के दुनिया भर मै फैले भारतीय शैली की योग साधना के प्रति समर्पित भारत योग अन्तर्राष्ट्रीय परिवार को जनता कर्फ्यू का सदुपयोग इस स्टाइल में करके इसे बंधन और मजबूरी के बजाय वरदान बनाने की दिनचर्या दी है और उनसे आव्हान किया है कि जैसे कोरोना का वायरस फैल रहा है उसी प्रकार उन्हे संक्रामक साधक बन कर स्वास्थ्य, जीवनी शक्ति, सकारात्मकता, सहयोग, शांति, प्रेम व आनंद बढ़ाने वाला योगाभ्यास का वायरस सब तक पहुंचाने का पुण्य कार्य करना चाहिए। उन्होंने उनसे यह भी अपेक्षा की है कि सोशल मीडिया का प्रयोग भय, भ्रांति, अज्ञानता व आतंक फैलाने के लिए नहीं बल्कि स्वास्थ्य सहयोग सकारात्मकता और आशावाद बढ़ाने के लिए करना चाहिए।
योग में मन की शक्ति के सूक्ष्म अध्ययन व उसकी शक्ति पर नियंत्रण के उपायों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मानव मन की एक विशेषता है कि वह वर्तमान से कभी संतुष्ट नहीं रहता। उसकी अपनी कल्पनाएं हैं और उन कल्पनाओं के मूर्त रूप होने की इंतजार करता है। रूहानियत के मामले में भी ऐसा ही है। योग गुरु ने कहा कि मस्जिद, मंदिर, गिरजा आदि धर्मस्थलों से हमें जिंदगी जीने का सलीका और रास्ता मिलता है।
संक्रमण से सुरक्षित लोगों को खुद को किसी के भी संपर्क से बचे रहना बहुत जरूरी बताते हुए कहा कि अपनी प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाए रखने के लिए घर पर ही योग का अभ्यास और आहार की एहतियात ज़रूरी है। इसके बारे में मोक्षायतन योग संस्थान के योग एक्सपर्ट्स सोशल मीडिया के माध्यम से सभी को निःशुल्क शिक्षित भी कर रहे हैं और समस्या समाधान भी, जिसका फायदा सभी को लेना चाहिए। इसके अलावा अग्नि में कपूर व गूगल हवन करना भी अपने घर आंगन को संक्रमण से सुरक्षित रखने का अच्छा उपाय है, कोई ज़रूरी नहीं कि ऋषियों द्वारा सुझाए गए महामारी व आपदा नाशक मंत्र आपको आते ही हों।
संभव हो तो इन पांच मंत्रों से आहुतियां दें
"ॐ विष्वानिदेव सवितुर्दुरितानि परासुव।
यदभद्रमतन्न आसुव।।" -वेद मंत्र
"उपसर्गानशेषांस्तु -- महामारीसमुद्भवान ।
तथा त्रिविधमुत्पातं महात्म्यं शमयेन्मम।" व
"जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।" -दुर्गा सप्तशती
त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम।
उर्वारुकमिव बंधनानमृत्युर्मुक्षीय मामृतात।।
-महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करने की सलाह भी दी। योगी भारत भूषण ने कहा कि एक ही समय पर सामूहिक रूप से किया गया पाठ जाप व ध्यान कॉस्मिक एनर्जी को प्रभावित करने की शक्ति रखते हैं।
जनता कर्फ्यू बंधन नहीं अध्यात्मिक प्रयोग का एक बड़ा मौका: स्वामी भारत भूषण