एमपी धमाका द्वारका से लाया वो खास पत्र जो रुकमणी ने भगवान श्री कृष्ण को लिखा 

 


(दीपक तिवारी)

एमपी धमाका अपने पाठकों के लिए द्वारका के श्री रुकमणी मंदिर से वो खास पत्र लेकर आया है जो श्री रुक्मणी जी ने भगवान श्री कृष्ण को लिखा था। इस पत्र की खास बात यह है कि जिस कन्या के विवाह कार्य में किसी भी प्रकार का विध्न हो अथवा विवाह में विलंब हो तो रुकमणी द्वारा श्रीकृष्ण को भेजे गए इस पत्र के श्रद्धा पूर्वक पाठ या श्रवण करने मात्र से समस्त विध्न नष्ट हो जाते हैं एवं इच्क्षित वर की प्राप्ति होती है।

 

श्री रुक्मणी का पत्र इस प्रकार है।

 

रुकमणी जी ने कहा- हे त्रिभुवन सुंदर! आपके गुण सुनने वालों के कानों के रास्ते ह्रदय में प्रवेश करके एक-एक अंग के ताप, जन्म-जन्म की जलन बुझा देते हैं तथा आप का रूप सौन्दर्य संसार के सभी देहधारी जीवों को चारों पुरुषार्थ तथा समस्त सुखों को प्रदान करते हैं। आपके गुणों का श्रवण करके प्यारे अच्युत! मेरा चित लज्जा छोड़कर आप में ही प्रवेश कर रहा है।१

प्रेम स्वरूप श्याम सुंदर! चाहे जिस दृष्टि से देखें कुल, शील, स्वभाव, सौंदर्य, विद्या, अवस्था, प्रेम धाम सभी में आप अद्वितीय हैं, अपने ही समान हैं‌। मनुष्य लोक में जितने भी प्राणी हैं, सबका मन आपको देखकर शांति का अनुभव करते हुए आनंदित होता है। ऐसी स्थिति में हे पुरुष भूषण। अब आप ही बतलाइए- ऐसी कौन सी कुलवती, महागुणवती और धैर्यवती कन्या होगी, जो विवाह के योग्य समय आने पर आपको ही पति के रूप में वरण ना करेगी?।२

श्री रुक्मणी ने पत्र में आगे लिखा-

इसलिए प्रियतम! मैंने आपको पति रूप से वरण किया है। मैं आपको आत्मसमर्पण कर चुकी हूं। आप अंतर्यामी हैं। मेरे हृदय की बात आप से छिपी नहीं है। आप यहां पधार कर मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कीजिए। कमलनयन! प्राणवल्लभ! मैं आप  सरीखे वीर को समर्पित हो चुकी हूं, और सिर्फ आपकी हूं। अब जैसे सिंह का भाग सियार छू जाए, वैसे कहीं शिशुपाल निकट से आकर मेरा स्पर्श ना कर जाए ऐसा कुछ कीजिए।३

मैंने यदि जन्म-जन्म में पूर्त (कुआं, बावड़ी, आदि खुदवाना), इष्ट (यज्ञ आदि करना) दान, नियम व्रत तथा देवता, ब्राह्मण और गुरु आदि की पूजा की हो तो भगवान श्री कृष्ण आकर मेरा पाणिग्रहण करें, शिशुपाल अथवा दूसरा कोई भी पुरुष मेरा स्पर्श ना कर सके।४

प्रभो! आप अजित हैं। जिस दिन मेरा विवाह होने वाला हो उसके एक दिन पहले आप हमारी राजधानी में गुप्त रूप से आ जाइए और बड़े-बड़े सेनापतियों के साथ शिशुपाल तथा जरासंध की सेनाओं को मथकर, तहस-नहस कर दीजिए और बलपूर्वक राक्षस विधि से वीरता का मूल्य देकर मेरा पाणिग्रहण कीजिए।५

यदि आप यह सोचते हो कि "तुम तो अंत:पुर में पहरे के अंदर रहती हो, तुम्हारे भाई बंधुओं को मारे बिना मैं तुम्हें कैसे ले जा सकता हूं?" तो इसका उपाय मैं आपको बतलाए देती हूं। हमारे कुल का ऐसा नियम है कि विवाह के पहले दिन कुलदेव का दर्शन करने के लिए एक बहुत बड़ी यात्रा होती है, भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है- जिसमें विवाही जाने वाली कन्या को दुल्हन के रूप में सुसज्जित होकर नगर के बाहर स्थित गिरजा देवी के मंदिर में जाना पड़ता है।६

कमलनयन! उमापति भगवान शंकर के समान बड़े-बड़े महापुरुष भी आत्म शुद्धि के लिए आपके चरण कमलों की धूल से स्नान करना चाहते हैं। यदि मैं आपका वह प्रसाद, आपकी वह चरण धूल नहीं प्राप्त कर सकी तो व्रत द्वारा शरीर को सुखाकर प्राण छोड़ दूंगी। चाहे उसके लिए सैकड़ों जन्म क्यों ना लेने पड़ें, कभी ना कभी तो आपका वह प्रसाद अवश्य ही मिलेगा।७

इति रुक्मिणी पत्रम्