वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। इसी तिथि को भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था इस कारण इसी तिथि को परशुराम जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया को लेकर मतभेद है। भगवान परशुराम जी का जन्म प्रदोष काल में होने के कारण परशुराम जयंती 25 अप्रैल शनिवार को मनाई जाएगी एवं अक्षय तृतीया का पर्व 26 अप्रैल रविवार को मनाया जाएगा।
भगवान परशुराम स्वयं भगवान विष्णु के अंशावतार हैं। इनकी गणना दशावतारो में होती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में उच्च के 6 ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था। इस प्रकार अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है। इस तिथि को प्रदोषव्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकटयकाल प्रदोष काल में ही हुआ था।
धर्माधिकारी पंडित विनोद शास्त्री ने बताया कि धर्मसिंधु ग्रंथ के पृष्ठ क्रमांक 72 पर स्पष्ट परशुराम जयंती को लेकर स्पष्ट मत दिया गया है कि परशुराम जयंती में रात्रि के प्रथम पहर व्यापिनी तृतीय ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था। इस कारण प्रदोष काल में तृतीया तिथि हो वही ग्रहण करना चाहिए। 25 अप्रैल शनिवार को भारतीय मानक समय के अनुसार 11:51 से तृतीया तिथि प्रारंभ हो जाएगी और 26 अप्रैल रविवार को भारतीय समय के अनुसार दोपहर 1:22 तक रहेगी। इसी कारण भगवान परशुराम जी की जयंती प्रदोष काल और तृतीया तिथि का संयोग 25 अप्रैल को बन रहा है। 25 अप्रैल शनिवार को भगवान परशुराम जी की जयंती मनाना शास्त्र सम्मत है वही निर्णय सिंधु ग्रंथ के पृष्ठ क्रमांक 183 पर स्पष्ट अक्षय तृतीया को लेकर निर्णय दिया गया है कि वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है अक्षय तृतीया पर स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता है इस दिन स्नान दान हवन पूजन श्राद्ध कर्म जल पात्र छाता वस्त्र दान किया जाए तो अक्षय फल की प्राप्ति होती है निर्णय सिंधु ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि पूर्वाहव्यापिनी( पर विध्दा) अर्थात तृतीय युक्त चतुर्थी ग्रहण करना चाहिए दुतिया युक्त तृतीय त्याज है दुतिया युक्त तृतीय में पुण्य नष्ट होता है और तृतीय युक्त चतुर्थी मैं अक्षय तृतीया का फल करोड़ों पुण्य को देने वाला होता है 26 अप्रैल रविवार को भारतीय मानक समय के अनुसार दोपहर में 1:22 तक तृतीया तिथि रहेगी इसके बाद चतुर्थी तिथि प्रारंभ होगी 26 अप्रैल रविवार को अक्षय तृतीया का पर्व मनाना शास्त्र सम्मत है
वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को अक्षय तृतीया या आखा तृतीया अथवा आखा तीज भी कहते हैं। अक्षय का शाब्दिक अर्थ है जिसका कभी नाश ना हो अथवा जो स्थाई रहे स्थाई वही रह सकता है जो सर्वदा सत्य है सत्य केवल परमात्मा ईश्वर ही है जो अक्षय अखंड और सर्व व्यापक है। यह अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर तिथि है यह अक्षय तिथि परशुराम जी का जन्मदिन होने के कारण परशुराम तिथि भी कहीं जाती है। परशुराम जी की गिनती चिरंजीवी महात्मा में की जाती है अतः यह तिथि चिरंजीवी तिथि भी कहलाती है। चारों युगों सतयुग त्रेता युग द्वापर युग और कलयुग मैं से त्रेता युग का आरंभ आखा तीज से हुआ है इस कारण इस तिथि को युगादितिथि भी कहते हैं।
भविष्य पुराण के अनुसार सभी कर्मों का फल अक्षय हो जाता है इसलिए इसका नाम अक्षय पड़ा है।