भगवान परशुराम जयंती 25 अप्रैल पर विशेष: भगवान विष्णु के अंशावतार थे भगवान परशुराम

 

वैशाखस्य सिते पक्षे तृतीयायां पुनर्वसौ!निशायाः प्रथमे यामे रामाख्यः समये हरिः!!स्वोच्चगैः षड्ग्रहैर्युके मिथुने राहुसंस्थिते! रेणुकायास्तु यो गर्भादवतीणों विभुः स्वयम्!!

वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को प्रदोष काल में भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था। भगवान परशुराम स्वयं भगवान विष्णु के अंशांवतार हैं। इनकी गणना दशावतारों में होती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में उच्च के 6 ग्रहों से युक्त मिथुन राशिफल राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था। इस प्रकार अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है। धर्मसिंधु निर्णय सिंधु ग्रंथों के अनुसार इस तिथि को प्रदोषव्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकटयकाल प्रदोष काल ही है। भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि के पुत्र थे पुत्रोत्पत्ति के निमित्त इनकी माता तथा विश्वामित्र जी की माता को प्रसाद मिला था, जो दैववशात् आपस में बदल गया था। इससे रेणुका का पुत्र परशुराम जी ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे, जबकि विश्वामित्र जी क्षत्रियकुलोत्पन्न होकर भी ब्रह्म ऋषि हो गए। जिस समय इनका अवतार हुआ था उस समय पृथ्वी पर क्षत्रिय राजाओं का बाहुल्य हो गया था उन्हीं में से एक सहस्त्रार्जुन ने इनके पिता जमदग्नि का वध कर दिया था। जिससे क्रोधित होकर उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय राजाओं से मुक्त किया। भगवान शिव के दिए अमोघ परशु ( फरसे) को धारण करने के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा।

धर्मसिंधु निर्णय सिंधु ग्रंथों के अनुसार इस बार परशुराम जयंती 25 अप्रैल शनिवार को प्रदोष काल में मनाना शास्त्र सम्मत है।

व्रत का विधान_ व्रत के दिन वृत्ति नित्य कर्म से निवृत्त होकर प्रातः स्नान करके सूर्य शतक मौन धारण कर सायं काल में पुनः स्नान करके भगवान परशुराम की मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें। रात्रि में जागरण कर भगवान परशुराम का स्मरण कर करना चाहिए। इस दिन अपने-अपने घरों में ध्वजा लगाना चाहिए। हर ब्राह्मण के घर में भगवान परशुराम का पूजन करना चाहिए। प्रदोष काल में घरों में दीपक जलाकर परशुराम जयंती का उत्सव मनाना चाहिए।

 

धर्माधिकारी पंडित विनोद शास्त्री विदिशा