विद्वान तीन पुत्र समाज को सौंप शान से विदा हुईं अम्मा (श्रीमती रमादेवी शर्मा ) 

विद्वान तीन पुत्र समाज को सौंप शान से विदा हुईं अम्मा (श्रीमती रमादेवी शर्मा )



“विनम्र श्रद्धांजलि" अलविदा अम्मा.....


दुबली पतली काया को लेकर गणेश की अथाई में साधारण परन्तु विद्वत्त परिवार में व्याह कर आई अम्मा और उनके संघर्षो को जितना कहा जाए कम है। इसे पारिवारिक पुण्य प्रताप ही कहा जाएगा कि उन्होंने अपने तीनों पुत्रों को सामाजिक मूल्यों के प्रतिस्वरुप प्रकाण्ड विद्वान बनाकर सनातन समाज को अर्पित कर पहाड़ों के बीच राह बनाने जैसा काम किया है।
उनके सम्पर्क में रहे बच्चों से उनके बारे में जितना सुना उसके लिहाज से वह एकदम कुम्हार और घड़े की सी भाँति समझ आती है जैसे कुम्हार मिट्टी के घड़े बनाते समय ऊपर से जितनी चोट करता है अंदर से उतना ही मजबूत स्नेहमयी सहारा भी देता है ताकि वह मजबूत और टिकाऊ बन सके। 
बस अम्मा ने भी यही किया जिसकी परिणिति में आज गुरुदेव नलिनीकांत जी, लक्ष्मीकांत जी (पूर्व मंत्री) और उमाकान्त जी (विधायक सिरोंज) उनकी एक श्रेष्ठ रचना के रूप में हमारे सामने हैं। बाल्यकाल में जब लक्ष्मीकांत अपनी मित्रमंडली के साथ सामाजिक कार्यों में दिन रात घूमते थे तब अम्मा सबको डांट कर कहती थी कि उसे फालतू न घुमाना। बिगाडियो मत वाहे और फिर चाहे दिन हो या रात आराम में हो या थकी हुई कभी भी चूल्हे पर खाना बनाकर घर मे आधी आधी रात तक धमाल जमाये चौकड़ी को डाँट या प्रेम से  परोसने में कभी परहेज नहीं किया।
अपने बाल्यकाल में मैंने हमेशा अम्मा को दुबली पतली लेकिन चुस्त दुरुस्त देखा लेकिन जब तक अम्मा से मेरी चिनार हुई तब तक वह अपना स्वस्थ जीवन जीकर वृद्धावस्था के भी भीतर रुग्णावस्था को प्राप्त कर रहीं थी। लेकिन एक दो मुलाकातों ने ही अम्मा से ऐसे घुल गए जैसे पहचान पुरानी हो लेकिन अगली मुलाकात में फिर पूछो की पहचाना तो वह कहती कि गाँधी फ़ोटो वाले को भैया है न और टोपी वाले बाबू महाराज को नाती, बहुत शैतान थो तू बचपन से ओर फिर लंबी बातों का सिलसिला जिसमें बक़ाई उनकी याददाश्त को मानना पड़ता था जिनकों हम अभी तक नही जानते उनकी तक कुंडली अम्मां की ज़बान पर हमेशा ताजी रहती फिर पूरे गली मोहल्ले के हाल चाल फिर उनकी भूली बिसरी यादें। 
मुझे आज भी याद है जब बात करीब 2015-16 की रही होगी जब ढाई तीन साल की रही मेरी बेटी यशु के साथ भोपाल मकान पर जाना हुआ था तब उसकी शैतानी देखकर वह बहुत खुश भी हो रही थी और खुद भी खेल रही थी और जाते वक्त उसे 200 रु भी दुलार करके भरपूर आशीष के साथ दिए थे। ओर फिर उसके बाद हुई मुलाकातों में उन्होंने हमेशा ही उसको जरूर याद किया था। थाइराइड के चलते दुबली पतली अम्माँ का वजन काफी बढ़ चुका था अनेक बीमारियां उम्र के साथ शरीर पर हावी होने का प्रयास कर रही थी लेकिन फिर भी गार्डन में या कमरे में घूमना अम्मा की नित्य क्रिया में शुमार था। अम्माँ और लक्ष्मीकांत जी का सदैव से एकदूसरे के प्रति लगाव रहा है करीब 2012 जब से अम्माँ की बीमारी बढ़ी तब से ही लक्ष्मीकांत जी एक साये की तरह उनकी देखभाल और समुचित इलाज में लग गए थे। सरकार में मंत्री होने की व्यस्तता के बाबजूद उनकी पूरी चिंता करना उनको डाँट डपट कर दवाएं खिलाना, खाने पीने की चिंता करने का धर्म बखूबी निभाया है। 
षड्यंत्रयोग से जब लक्ष्मीकांत जी जेल में थे तब अम्मां का एक-एक दिन साल भर जैसा बीता था उनकी अंतरात्मा से कितनी किसके लिए दुआ-बददुआ की आह निकली होगी और वह कितनी सार्थक होगी यह तो समय की गर्त में है बरहाल जेल से छूटने के बाद जेल के ही पास के एक घर मे बीमार होने के बाद भी बेटे को दुलारने पहुँची माँ बेटे की मुलाकात का वह भावनात्मक दृश्य जिन्होंने भी देखा था उसे शब्दों में पिरोकर बयां करना बड़ा मुश्किल है। इस साल के सावन में जब से अम्माँ कमजोर होकर ज्यादा बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हुई तब से लेकर आज तक पूरा परिवार उनकी तीमारदारी में जुटा हुआ था हालात तो यहाँ तक भी हुए की उनकी देखरेख ओर अनजाने भय से लक्ष्मीकांत जी का सामाजिक क्षेत्र तो क्या सिरोंज आना भी न के बराबर हो गया था। 
जन्माष्टमी के पहले जब में और राजेंद्र जी उनको देखने अस्पताल पहुँचे तब उनको कफ निकालने की मशीन लगी हुई थी चहरे पर लगे मास्क और उसके बेल्ट की खिंचावट में वह बिल्कुल भी आरामदायक महसूस नही कर रही थी। ओर वह उसे लगातार हर एक मिनिट में हटाने की गुहार मौजूद स्टॉफ नर्स,बेटी,नातिन से कर रहीं थी और उनकी कोई नही सुन रहा था तब वह बार बार अपने अनमोल अस्त्र लक्ष्मीकांत के नाम का उपयोग कर रहीं थी कि "वाहे बुलाओ वही सुनेगो मेरी तुम सब मोहे परेशान कर रहे हो। शाम का समय हो चला था घर से उनके लिए चाय आने वाली थी ओर जब उनसे पूछा की चाय पियोगी तो नाराजगी में मना कर दिया। में उनकी इस आदवत को ताड़ गया था मेने भी उनके पास जाकर बोला अम्मा मने मत करो नही तो डॉक्टर जा मशीन नही निकालेंगे हा बोल दो तो उन्होंने फट से हाँ कर दी ओर जैसे ही मास्क निकला चाय भी पी ओर हमे भी निहारा मैने पूछा अम्माँ पहचान तो उनके इंकार करने पर मैने नाम बताया तो टूटीफूटी आवाज में उन्होंने फिर वही दोहराया "फ़ोटो वाले को भैया" ओर राजेन्द्र जी को जरूर पहचान गई थी और आखिर पहचानें भी तो क्यों नही बचपन से उनके सामने बड़ा होकर आज भी उनके बेटे और परिवार के साथ सुख दुख में जीवटता से जो खड़े है। खैर अम्मां हमारे बीच से आज चलीं गई और उन्हें जाना भी था स्थाई समय लेकर यहाँ कोई नही आया है लेकिन अम्माँ अपने साथ ले गई एक सुनहरा अतीत,अनुभव,समय ओर एक वो जीवन पद्दति जो हम अपने आने वाली पीढ़ी को कभी नही दे सकते। आपने निश्चित ही एक देवतुल्य जीवन जीया है। एक साधारण लेकिन विद्वान परिवार में व्याह कर आने ओर साधारण परिवेश में अपने बच्चों को संस्कारित करके एक मजबूत नेता, धर्मप्रधान पुत्र बनाने के से लेकर राजा समान पुत्रों के घर से अंतिम विदाई पाना भी पूर्वजों के आशीर्वाद से ही प्राप्त होता है । निश्चित ही आपका कोटि कोटि आशीर्वाद प्रेम हम सब पर सदा ही बरसेगा। ईश्वर आपको निश्चित अपने चरणों मे वास प्रदान करेंगे इन्ही शब्द रूपी नमन के साथ आपके चरणों मे बार बार मस्तक रखकर अंतिम आत्मीय श्रद्धासुमन अर्पित करतें है....
सचिन शर्मा